23 फिर दान का पुत्र हूशीम था। 24 नप्ताली के पुत्र यहसेल, गूनी, सेसेर, और शिल्लेम थे। 25 बिल्हा, जिसे लाबान ने अपनी बेटी राहेल को दिया, उसके बेटे पोते ये ही हैं, उसके द्वारा याकूब के वंश में सात प्राणी हुए।
26 याकूब के निज वंश के जो प्राणी मिस्र में आए, वे उसकी बहुओं को छोड़ सब मिलकर छियासठ प्राणी हुए। 27 और यूसुफ के पुत्र, जो मिस्र में उससे उत्पन्न हुए, वे दो प्राणी थे; इस प्रकार याकूब के घराने के जो प्राणी मिस्र में आए वे सब मिलकर सत्तर हुए। *
याकूब और उसका परिवार मिस्र में
28 फिर उसने यहूदा को अपने आगे यूसुफ के पास भेज दिया कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए। 29 तब यूसुफ अपना रथ जुतवाकर अपने पिता इस्राएल से भेंट करने के लिये गोशेन देश को गया, और उससे भेंट करके उसके गले से लिपटा और बहुत देर तक उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा। 30 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, "मैं अब मरने से भी प्रसन्न हूँ, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुँह देख लिया।"
31 तब यूसुफ ने अपने भाइयों से और अपने पिता के घराने से कहा, "मैं जाकर फिरौन को यह कहकर समाचार दूँगा, 'मेरे भाई और मेरे पिता के सारे समने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं; 32 और वे लोग चरवाहे हैं, क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिये वे अपनी भेड़-बकरी, गाय-बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं।' 33 जब फ़िरौन तुम को बुला के पूछे, तुम्हारा उद्यम क्या है ?' 34 तब यह कहना, 'तेरे दास लड़कपन से लेकर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन् हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे।' इससे तुम गोशेन देश में रहने पाओगे; क्योंकि सब चरवाहों से मिस्री लोग घृणा करते हैं।"
47 तब यूसुफ ने फिरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, "मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं। " 2 फिर उसने अपने भाइयों में से पाँच जन लेकर फिरौन के सामने खड़े कर दिए। 3 फिरौन ने उसके भाइयों से पूछा, “तुम्हारा उद्यम क्या है ?" उन्होंने फ़िरौन से कहा, "तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे।" 4 फिर उन्होंने फ़िरौन से कहा, "हम इस देश में परदेशी की भाँति रहने के लिये आए हैं, क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासों को भेड़-बकरियों के लिये चारा न रहा; इसलिये अपने दासों को गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे।"
5 तब फिरौन ने यूसुफ से कहा, "तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, 6 और मिस्र देश तेरे सामने पड़ा है; इस देश का जो सब से अच्छा भाग हो, उसमें अपने पिता और भाइयों को बसा दे, अर्थात् वे गोशेन ही देश में रहें; और यदि तू जानता हो, कि उनमें से परिश्रमी पुरुष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिकारी ठहरा दे।" 7 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब को ले आकर फिरौन के सम्मुख खड़ा किया; और याकूब ने फ़िरौन को आशीर्वाद दिया। 8 तब फिरौन ने याक़ूब से पूछा, “तेरी आयु कितने दिन की हुई है ?" 9 याकूब ने फ़िरौन से कहा, “मैं एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बिता चुका हैं: मेरे जीवन के दिन थोड़े और दुःख से भरे हुए. भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का में अभी नहीं हुआ।""
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