16 इसलिये अब जाकर इस्त्राएली पुरनियों को इकट्ठा कर, और उनसे कह, 'तुम्हारे पितर अब्राहम, इसहाक, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे दर्शन देकर यह कहा है कि मैं ने तुम पर और तुम से जो बर्ताव मिस्र में किया जाता है उस पर भी चित्त लगाया है, 17 और मैं ने ठान लिया है कि तुम को मिस्र के दुःखों में से निकालकर कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के देश में ले चलूँगा, जो ऐसा देश है कि जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं।
18 तब वे तेरी मानेंगे, और तू इस्राएली पुरनियों को संग लेकर मिस्र के राजा के पास जाकर उस से यों कहना, 'इब्रियों के परमेश्वर, यहोवा से हम लोगों की भेंट हुई है; इसलिये अब हम को तीन दिन के मार्ग पर जंगल में जाने दे कि अपने परमेश्वर यहोवा को बलिदान चढ़ाएँ ।' 19 मैं जानता हूँ कि मिस्र का राजा तुम को जाने न देगा, वरन् बड़े बल से दबाए जाने पर भी जाने न देगा। 20 इसलिये मैं हाथ बढ़ाकर उन सब आश्चर्यकर्मों से, जो मिस्र के बीच करूँगा, उस देश को मारूँगा; और उसके पश्चात् वह तुम को जाने देगा। 21 तब मैं मिस्त्रियों से अपनी इस प्रजा पर अनुग्रह करवाऊँगा; और जब तुम निकलोगे तब छूछे हाथ न निकलोगे । * 22 वरन् तुम्हारी एक एक स्त्री अपनी अपनी पड़ोसिन, और उनके घर में रहनेवाली से सोने- चाँदी के गहने, और वस्त्र माँग लेगी, और तुम उन्हें अपने बेटों और बेटियों को पहिनाना; इस प्रकार तुम मिस्त्रियों को लूटोगे।"
मूसा का अद्भुत सामर्थ्य पाना
4 तब मूसा ने उत्तर दिया, 'वे मेरा विश्वास नहीं करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन् कहेंगे, यहोवा ने तुझ को दर्शन नहीं दिया' ।" 2 यहोवा ने उससे कहा, "तेरे हाथ में वह क्या है ?" वह बोला, "लाठी।" 3 उसने कहा, "उसे भूमि पर डाल दे। जब उसने उसे भूमि पर डाला तब वह सर्प बन गई, और मूसा उसके सामने से भागा 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, "हाथ बढ़ाकर उसकी पूँछ पकड़ ले, ताकि वे लोग विश्वास करें कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर अर्थात् । अब्राहम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने तुझ को दर्शन दिया है। 5 जब उसने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ा तब वह उसके हाथ में फिर लाठी बन गई।
6 फिर यहोवा ने उससे यह भी कहा, "अपना हाथ छाती पर रखकर ढाँप।" अतः उसने अपना हाथ छाती पर रखकर ढाँप लिया; फिर जब उसे निकाला तब क्या देखा कि उसका हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत हो गया है। 7 तब उसने कहा, "अपना हाथ छाती पर फिर रखकर ढाँप।" उसने अपना हाथ छाती पर रखकर ढाँप लिया; और जब उस ने उसको छाती पर से निकाला तब क्या देखता है कि वह फिर सारी देह के समान हो गया। 8 तब यहोवा ने कहा, "यदि वे तेरी बात का विश्वास न करें, और पहले चिह्न को न मानें, तो दूसरे चिह्न का विश्वास करेंगे। 9 और यदि वे इन दोनों चिह्नों का विश्वास न करें और तेरी बात को न मानें, तब तू नील नदी से कुछ जल लेकर सूखी भूमि पर डालना; और जो जल तू नदी से निकालेगा वह सूखी भूमि पर लहू बन जायेगा।
10 मूसा ने यहोवा से कहा, “हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहले था, और न जब से तू अपने दास से बातें करने लगा; मैं तो मुँह और जीभ का भद्दा हूँ।" 11 यहोवा ने उससे कहा, ''मनुष्य का मुँह किसने बनाया है? और मनुष्य को गूँगा, या बहिरा, या देखनेवाला, या अंधा, मुझ यहोवा को छोड़ कौन बनाता है ? 12 अब जा, मैं तेरे मुख के संग होकर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊँगा।” 13 उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, कृपया किसी और को तू भेज ।" 14 तब यहोवा का कोप मूसा पर भड़का और उसने कहा, "क्या तेरा भाई लेवीय हारून नहीं है? मुझे निश्चय है कि वह बोलने में निपुण है, और वह तुझ से भेंट के लिये निकला आता है; और तुझे देखकर मन में आनन्दित होगा।
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