याकूब की अन्तिम इच्छा क्या था। |
27 इस्राएली मिस्र के गोशेन प्रदेश में रहने लगे; और वहाँ की भूमि उनके वश में थी; और वे फूले फले, और अत्यन्त बढ़ गए। 28 मित्र देश में याकूब सत्रह वर्ष जीवित रहा : इस प्रकार याकूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष को हुई। 29 जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उसने अपने पुत्र यूसुफ को बुलवाकर कहा, "यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रखकर शपथ खा कि तू मेरे साथ कृपा और सच्चाई का यह काम करेगा कि मुझे मिस्र में मिट्टी न देगा।
30 जब मैं अपने बापदादों के संग सो जाऊँगा, तब तू मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के कब्रिस्तान में रखेगा।" तब यूसुफ ने कहा, “मैं तेरे वचन के अनुसार करूँगा।" 31 फिर उसने कहा, "मुझ से शपथ खा। अतः उसने उससे शपथ खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर झुकाकर प्रार्थना की।*
याकूब का एप्रैम और मनश्शे को आशीर्वाद देना
48 इन बातों के पश्चात् किसी ने यूसुफ से कहा, "सुन, तेरा पिता बीमार है ।" तब वह मनश्शे और एप्रेम नामक अपने दोनों पुत्रों को संग लेकर उसके पास चला। 2 किसी ने याकूब को बता दिया, "तेरा पुत्र यूसुफ तेरे पास आ रहा है, तब इस्राएल अपने को सम्भालकर खाट पर बैठ गया। 3 और याकूब ने यूसुफ से कहा, "सर्वशक्तिमान् ईश्वर ने कनान देश के लूज नगर के पास मुझे दर्शन देकर आशीष दी,
4 और कहा, 'सुन, मैं तुझे फलवन्त करके बढ़ाऊँगा, और तुझे राज्य राज्य की मण्डली का मूल बनाऊँगा, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को यह देश दूँगा, जिससे कि वह सदा तक उनकी निज भूमि बनी रहे। * 5 और अब तेरे दोनों पुत्र, जो मिस्र में मेरे आने से पहले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्थात् जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रेम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे। 6 और उनके पश्चात् तेरे जो सन्तान उत्पन्न हो वह तेरे तो ठहरेंगे; परन्तु बँटवारे के समय वे अपने भाइयों ही के वंश में गिने जाएँगे। * 7 जब मैं पदान* से आता था, तब एप्राता पहुँचने से थोड़ी ही दूर पहले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे सामने मर गई, और मैं ने उसे वहीं, अर्थात् एप्राता जो बैतलहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी।" 8 तब इस्राएल को यूसुफ के पुत्र देख पड़े,
और उसने पूछा, “ये कौन हैं ?" 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “ये मेरे पुत्र हैं, जो परमेश्वर ने मुझे यहाँ दिए हैं।" उसने कहा, "उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूँ।" 10 इस्राएल की आँखें बुढ़ापे के कारण धुन्धली हो गई थीं, यहाँ तक कि उसे कम सूझता था । तब यूसुफ उन्हें उनके पास ले गया; और उसने उन्हें चूमकर गले लगा लिया। 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, "मुझे आशा न थी कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊँगा : परन्तु देख, परमेश्वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है।
12 तब यूसुफ ने उन्हें अपने घुटनों के बीच से हटाकर और अपने मुँह के बल भूमि पर गिरके दण्डवत् की । 13 तब यूसुफ ने उन दोनों को लेकर, अर्थात् एप्रेम को अपने दाहिने हाथ से कि वह इस्राएल के बाएँ हाथ पड़े, और मनश्शे को अपने बाएँ हाथ से कि वह इस्राएल के दाहिने हाथ पड़े, उन्हें उसके पास ले गया। 14 तब इस्राएल ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर एप्रेम के सिर पर जो छोटा था, और अपना बायाँ हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया, उसने जान बूझकर ऐसा किया नहीं तो जेठा मनश्शे ही था।
15 फिर उसने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, ''परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक चले, वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है; 16 और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशिष दे; और ये मेरे और मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक के कहलाएँ; और पृथ्वी में बहुतायत से बढ़ें।"
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