26 तब उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, "हे मेरे पुत्र, निकट आकर मुझे चूम।" 27 उसने निकट जाकर उसको चूमा; और उसने उसके वस्त्रों का सुगन्ध पाकर उसको यह आशीर्वाद दिया, *"देख, मेरे पुत्र की सुगन्ध जो ऐसे खेत की सी हैं जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो;
28 परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे। 29 राज्य राज्य के लोग तेरे अधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत् करें।
तू अपने भाइयों का स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत् करें। जो तुझे शाप दें वे आप ही शापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें वे आशीष पाएँ ।" *
आशीर्वाद के लिए एसाव की याचना
30 जैसे ही यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे चुका, और याकूब अपने पिता इसहाक के सामने से निकला ही था, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुँचा। 31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने पिता के पास ले आया, और उससे कहा, “हे मेरे पिता, उठकर अपने पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे।" 32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, "तू कौन है ?" उसने कहा, "मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ।"
33 तब इसहाक ने अत्यन्त थरथर काँपते हुए कहा, "फिर वह कौन था जो अहेर करके मेरे पास ले आया था, और मैं ने तेरे आने से पहले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया? अब उसको आशीष लगी भी रहेगी।" 34 अपने पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊँचे और दुःख भरे स्वर से चिल्लाकर अपने पिता से कहा, "हे मेरे पिता, मुझको भी आशीर्वाद दे!"
35 उसने कहा, "तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को ले के चला गया।" 36 उसने कहा, "क्या उसका नाम याकूब यथार्थ नहीं रखा गया ? उसने मुझे दो बार अड़ंगा मारा। मेरा पहिलौठे का अधिकार तो उसने ले ही लिया था और अब देख, उसने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है।" फिर उसने कहा, "क्या तू ने मेरे लिये भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है ?
37 इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, "सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयों को उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है। इसलिये अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिये क्या करूँ?" 38 एसाव ने अपने पिता से कहा, "हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है ? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे।" यों कहकर एसाव फूट फूटके रोया। * 39 उसके पिता इसहाक ने उससे कहा, ""सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि से दूर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर न पड़े।
40 तू अपनी तलवार के बल से जीवित रहे. और अपने भाई के अधीन तो हो; पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपने कन्धे पर से तोड़ फेंके।" * 41 एसाव ने तो याकूब से अपने पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; और उसने सोचा, "मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपने भाई याकूब को घात करूँगा।"
42 जब रिबका को उसके पहिलौठे पुत्र एसाव की ये बातें बताई गईं, तब उसने अपने छोटे पुत्र याकूब को बुलाकर कहा, "सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिये अपने मन में धीरज रखे हुए हैं। 43 इसलिये अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा; 44 और थोड़े दिन तक, अर्थात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना।
0 टिप्पणियाँ