सृष्टि का वर्णन उत्पत्ति 1:1-25
1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। 2 पृथ्वी बेडौल और सुनसान' पड़ी थी, और गहरे जल के ऊपर अन्धियारा था; तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। 3 जब परमेश्वर ने कहा, “उजियाला हो,' तो उजियाला हो गया। * 4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्व ने उजियाले को अन्धियारे से अलग किया।
5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धियारे को रात कहा। तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया।
6 फिर परमेश्वर ने कहा, 'जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।" 7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर बनाकर उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया। 8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा । तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया। *
9 फिर परमेश्वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे," और वैसा ही हो गया। 10 परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।
11 फिर परमेश्वर ने कहा, "पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक एक की जाति के अनुसार हैं, पृथ्वी पर उओं," और वैसा ही हो गया।
12 इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिनमें अपनी अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं उगे और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 13 तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।
14 फिर परमेश्वर ने कहा, "दिन को रात में अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियों हों, और वे चिह्नों, और नियत समयों और दिनों और वर्षों के कारण हों; 15 और वे ज्योतियों आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें," और वैसा ही हो गया। 16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाई, उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; और तारागण को भी बनाया।
17 परमेश्वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिये रखा कि वे पृथ्वी पर प्रकाश दें, 18 तथा दिन और रात पर प्रभुता करें, और उजियाले को अन्धियारे से अलग करें : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 19 तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया।
20 फिर परमेश्वर ने कहा, "जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।' 21 इसलिये परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल -जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया, और एक एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।
22 और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, “फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।" 23 तथा साँझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो गया।
24 फिर परमेश्वर ने कहा, "पृथ्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों," और वैसा ही हो गया। 25 इस प्रकार परमेश्वर ने पृथ्वी के जाति जाति के वन- पशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है।
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