फ़िरौन के स्वप्नों का अर्थ बताना चाहिए। Firon ke sapnon ka Arth ke bare mein janiye in Hindi Bible Vachan

20 तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन था, उसने अपने सब कर्मचारियों को भोज दिया, और उनमें से पिलानेहारों के प्रधान और पकानेहारों के प्रधान दोनों को बन्दीगृह से निकलवाया। 21 पिलानेहारों के प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फ़िरौन के हाथ में कटोरा देने लगा। 22 पर पकानेहारों के प्रधान को उसने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वप्नों का फल उनसे कहा था। 23 फिर भी पिलानेहारों के प्रधान ने यूसुफ को स्मरण न रखा; परन्तु उसे भूल गया।

फ़िरौन के स्वप्नों का अर्थ बताना

फ़िरौन के स्वप्नों का अर्थ बताना चाहिए। Firon ke sapnon ka Arth ke bare mein janiye in Hindi Bible Vachan

41 पूरे दो वर्ष बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा कि वह नील नदी के किनारे खड़ा है। 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। 3 और क्या देखा कि उनके पीछे और सात गायें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकलीं, और दूसरी गायों के निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई। 4 तब ये कुरूप और ये दुर्बल गायें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायों को खा गई। तब फिरौन जाग उठा। 

5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा कि एक डंठल में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं। 6 और क्या देखा कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकलीं। 7 और इन पतली बालों ने उन सातों मोटी और अन्न से भरी हुई बालों को निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही था। 8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ और उसने मिस्र के सब ज्योतिषियों और पण्डितों की बुलवा भेजा और उनको अपने स्वप्न बताए, पर उनमें से कोई भी उनका फल फिरौन को न बता सका।

9 तब पिलानेहारों का प्रधान फिरौन से बोल उठा, "मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए 10 जब फ़िरौन अपने दासों से क्रोधित हुआ था, और मुझे और पकानेहारों के प्रधान को कैद कराके अंगरक्षकों के प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया था 11 तब हम दोनों ने एक हो. रात में अपने अपने होनहार के अनुसार स्वप्न देखा। 12 वहाँ हमारे साथ एक इबी जवान था, जो अंगरक्षकों के प्रधान का दास था, अतः हम ने उसको बताया और उसने हमारे स्वप्नों का फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उसने बता दिया। 13 और जैसा जैसा फल उसने हम से कहा था, वैसा ही हुआ भी, अर्थात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फाँसी पर लटकाया गया।"

14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा; और वह झटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर और वस्त्र बदल कर फ़िरौन के सामने आया। 15 फ़िरौन ने यूसुफ से कहा, "मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है।" 16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, "मैं तो कुछ नहीं जानता * : परमेश्वर ही फिरौन के लिये शुभ वचन देगा।" 17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, "मैं ने अपने स्वप्न में देखा कि मैं नील नदी के किनारे खड़ा हूँ। 

18 फिर क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गायें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। 19 फिर क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गायें निकलीं, जो दुबली और बहुत कुरूप और दुर्बल हैं; मैं ने सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखीं। 20 इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी मोटी गायों को खा लिया; 21 और जब वे उनको खा गई तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहले के समान जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। 22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठल में सात अच्छी अच्छी और अत्र से भरी हुई बालें निकलीं।

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