35 और इन स्त्रियों के कारण इसहाक और रिबका के मन को खेद हुआ।
याकूब को आशीर्वाद मिलना
27 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आँखें ऐसी धुंधली पड़ गई कि उसको सूझता न था, तब उसने अपने जेठे पुत्र एसाव को बुलाकर कहा, “हे मेरे पुत्र," उसने कहा, "क्या आज्ञा ।" 2 उसने कहा, “सुन, मैं तो बूढ़ा गया हुॅं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा : 3 इसलिये अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हथियार लेकर मैदान में जा, और मेरे लिये अहेर कर ले आ। 4 तब मेरी रुचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना, कि मैं उसे खाकर मरने से पहले तुझे. जी भर के आशीर्वाद दूँ।"
5 तब एसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक एसाव से यह बात कह रहा था, तब रिबका सुन रही थी। 6 इसलिये उसने अपने पुत्र याकूब से कहा, "सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना है, 7 'तू मेरे लिये अहेर करके उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खाकर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहले आशीर्वाद दूँ।'
8 इसलिये अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान, 9 कि बकरियों के पास जाकर बकरियों के दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिये उसकी रुचि के अनुसार उनके मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊँगी। 10 तब तू उसको अपने पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खाकर मरने से पहले तुझ को आशीर्वाद दे ।" 11 याकूब ने अपनी माता, रिबका से कहा, "सुन, मेरा भाई एसाव तो रोंआ पुरुष हैं, और मैं रोमहीन पुरुष हूँ।
12 कदाचित् मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूँगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊँगा।" 13 उसकी माता ने उससे कहा, "हे मेरे पुत्र, शाप तुझ पर नहीं मुझ पर पड़ तू केवल मेरी सुन, और जाकर वे बच्चे मेरे पास ले आ।" 14 तब याकूब जाकर उनको अपनी माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रुचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया। 15 तब रिबका ने अपने पहलीठे पुत्र एसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, लेकर अपने छोटे पुत्र याकूब को पहिना दिए:16 और बकरियों के बच्चों की खालों को उसके हाथों में और उसके चिकने गले में लपेट दिया;
17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपनी बनाई हुई रोटी भी अपने पुत्र याकूब के हाथ में दे दी। 18 तब वह अपने पिता के पास गया और कहा, "हे मेरे पिता, " उसने कहा, "क्या बात है* ? हे मेरे पुत्र, तू कौन है ? 19 याकूब ने अपने पिता से कहा, "मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूँ। मैं ने तेरी आज्ञा के अनुसार किया है; इसलिये उठ और बैठकर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे।"
20 इसहाक ने अपने पुत्र से कहा, "हे मेरे पुत्र, क्या कारण है। कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया ?" उसने यह उत्तर दिया, "तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे सामने कर दिया।" 21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, “हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोलकर जानूँ कि तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है कि नहीं।" 22 तब याकूब अपने पिता इसहाक के निकट गया, और उसने उसको टटोलकर कहा, "बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ एसाव ही के से जान पड़ते हैं।" 23 और उसने उसको नहीं पहचाना, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे; अतः उसने उसको आशीर्वाद दिया।
24 और उसने पूछा, "क्या तू सचमुच मेरा पुत्रः एसाव है ?"" उसने कहा, "हाँ, मैं हूँ ।" 25 तब उसने कहा, "भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं अपने पुत्र के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूँ।" तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उसने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उसने पिया।
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