बिन्यामीन के साथ मिस्र देश जाना चाहिए।| मिस्र में पहले कौन सा धर्म था? | मिस्र देश कब बना?

36 तब उनके पिता याकूब ने उनसे कहा, "मुझ को तुम ने निवेश कर दिया, देखो, यूसुफ नहीं रहा, और शिमोन भी नहीं आया, और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो। ये सब विपत्तियाँ मेरे ऊपर आ पड़ी हैं।" 37 रूबेन ने अपने पिता से कहा, "यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊँ, तो मेरे दोनों पुत्रों को मार डालना; तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुँचा दूंगा।" 38 उसने कहा, "मेरा पुत्र तुम्हारे संग न जाएगा; क्योंकि उसका भाई मर गया और वह अब अकेला रह गया है: इसलिये जिस मार्ग से तुम जाओगे, उसमें यदि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्था में शोक के साथ अधोलोक में उत्तर जाऊँगा।"*

बिन्यामीन के साथ मिस्र देश जाना

बिन्यामीन के साथ मिस्र देश जाना चाहिए।
 मिस्र देश जाना चाहिए।
42 देश में अकाल और भी भयंकर होता गया। 2 जब वह अन्न जो वे मित्र से ले आए थे, समाप्त हो गया तब उनके पिता ने उनसे कहा, "फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 3 तब यहूदा ने उससे कहा, 'उस पुरुष ने हम को चेतावनी देकर कहा, 'यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे।' 4 इसलिये यदि तू हमारे भाई को हमारे संग भेजे, तब तो हम जाकर तेरे लिये भोजनवस्तु मोल ले आएँगे,  

5 परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएँगे, क्योंकि उस पुरुष ने हम से कहा, 'यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे ।" 6 तब इस्त्राएल ने कहा, “तुम ने उम्र पुरुष को यह बताकर कि हमारा एक और भाई है, क्यों मुझ से बुरा बर्ताव किया ?" 7 उन्होंने कहा, "जब उस पुरुष ने हमारी और हमारे कुटुम्बियों की स्थिति के विषय में इस रीति पूछा, 'क्या तुम्हारा पिता अब तक जीवित है ? क्या तुम्हारे कोई और भाई भी है ?" तब हम ने इन प्रश्नों के अनुसार उससे वर्णन किया; फिर हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, 'अपने भाई को यहाँ ले आओ'।" 

8 फिर यहूदा ने अपने पिता इस्राएल से कहा, "उस लड़के को मेरे संग भेज दे कि हम चले जाएँ; इससे हम और तु और हमारे बालबच्चे मरने न पाएँगे, वरन् जीवित रहेंगे। 9 मैं उसका जामिन होता हूँ; मेरे ही हाथ से तू उसको वापस लेना। यदि मैं उसको तेरे पास पहुँचाकर सामने न खड़ा कर दूँ, तब तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूंगा। 10 यदि हम लोग विलम्ब न करते, तो अब तक दूसरी बार लौट आते।"

11 तब उनके पिता इस्राएल ने उनसे कहा, "यदि सचमुच ऐसी ही बात है तो यह करो, इस देश की उत्तम उत्तम वस्तुओं में से कुछ कुछ अपने बोरों में उस पुरुष के लिये भेंट ले जाओ जैसे थोड़ा सा बलसान, और थोड़ा सा मधु, और कुछ सुगन्ध द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते, और बादाम 12 फिर अपने अपने साथ दूना रुपया ले जाओ; और जो रुपया तुम्हारे बोरों के मुँह पर रखकर लौटा दिया गया था, उसको भी लेते जाओ; कदाचित् यह भूल से हुआ हो। 13 अपने भाई को भी संग लेकर उस पुरुष के पास फिर जाओ, 14 और सर्वशक्तिमान् ईश्वर उस पुरुष को तुम पर दयालु करेगा, जिससे कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे, और यदि मैं निर्वश हुआ तो होने दो।"

15 तब उन मनुष्यों ने वह भेंट, और दूना रुपया, और बिन्यामीन को भी संग लिया, और चल दिए, और मिस्र में पहुँचकर यूसुफ के सामने खड़े हुए। 16 उनके साथ बिन्यामीन को देखकर यूसुफ ने अपने घर के अधिकारी से कहा, "उन मनुष्यों को घर में पहुँचा दो, और पशु मारके भोजन तैयार करो; क्योंकि वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे।" 17 तब वह अधिकारी पुरुष यूसुफ के कहने के अनुसार उन पुरुषों को यूसुफ के घर में ले गया 18 जब वे यूसुफ के घर को पहुँचाए गए तब वे आपस में डरकर कहने लगे, "जो रुपया पहली बार हमारे बोरों में लौटा दिया गया था, उसी के कारण हम भीतर पहुँचाए गए हैं, जिससे कि वह पुरुष हम पर टूट पड़े, और हमें वश में करके अपने दास बनाए, और हमारे गदहों को भी छीन ले।  

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ