15 इसलिये तू उसे ये बातें सिखाना; तू * और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग होकर जो कुछ तुम्हें करना होगा वह तुम को सिखलाता जाऊँगा। 16 वह तेरी ओर से लोगों से बातें किया करेगा; वह तेरे लिये मुँह और तू उसके लिये परमेश्वर ठहरेगा। 17 और तू इस तू लाठी को हाथ में लिए जा, और इसी से इन चिह्नों को दिखाना ।”
मूसा का मित्र देश लौटना
18 तब मूसा अपने ससुर यित्रो के पास लौटा और उससे कहा, "मुझे विदा कर कि मैं मिस्र में रहनेवाले अपने भाइयों के पास जाकर देखूँ कि वे अब तक जीवित हैं या नहीं।" यित्रो ने कहा, "कुशल से जा।" 19 और यहोवा ने मिद्यान देश में मूसा से कहा, "मिस्र को लौट जा; क्योंकि जो मनुष्य तेरे प्राण के प्यासे थे वे सब मर गए हैं।" 20 तब मूसा अपनी पत्नी और बेटों को गदहे पर चढ़ाकर मिस्र देश की ओर परमेश्वर की उस लाठी को हाथ में लिये हुए लौटा।
21 तब यहोवा ने मूसा से कहा, "जब तू मिस्र में पहुँचे तब ध्यान रहे कि जो चमत्कार मैं ने तेरे वश में किए हैं उन सभों को फिरौन को दिखलाना; परन्तु मैं उसके मन को हठीला करूँगा, और वह मेरी प्रजा को जाने न देगा। 22 और तू फ़िरौन से कहना, 'यहोवा यों कहता है, कि इस्राएल मेरा पुत्र वरन् मेरा जेठा है, 23 और मैं जो तुझ से कह चुका हूँ कि मेरे पुत्र को जाने दे कि वह मेरी सेवा करे; और तू ने अब तक उसे जाने नहीं दिया, इस कारण मैं अब तेरे पुत्र वरन् तेरे जेठे को घात करूँगा' । *"
24 तब ऐसा हुआ कि मार्ग पर सराय में यहोवा ने मूसा से भेंट करके उसे मार डालना चाहा। 25 तब सिप्पोरा ने एक तेज चकमक पत्थर लेकर अपने बेटे की खलड़ी को काट डाला, और मूसा के पाँवों पर यह कहकर फेंक दिया, “निश्चय तू मेरे लिए लहू बहानेवाला मेरा पति है ।" 26 तब यहोवा ने उसको छोड़ दिया। उस समय खतने के कारण वह बोली, “तू लहू बहानेवाला पति है।"
27 तब यहोवा ने हारून से कहा, "मूसा से भेंट करने को जंगल में जा ।" वह गया और परमेश्वर के पर्वत पर उससे मिला और उसको चूमा। 28 तब मूसा ने हारून को यह बतलाया कि यहोवा ने क्या क्या बातें कहकर उसको भेजा है, और कौन-कौन से चिह्न दिखलाने की आज्ञा उसे दी है। 29 तब मूसा और हारून ने जाकर इस्राएलियों के सब पुरनियों को इकट्ठा किया। 30 और जितनी बातें यहोवा ने मूसा से कही थीं वह सब हारून ने उन्हें सुनाईं, और लोगों के सामने वे चिह्न भी दिखलाए। 31 और लोगों ने उनका विश्वास किया; और यह सुनकर कि यहोवा ने इस्राएलियों की सुधि ली और उनके दुःखों पर दृष्टि की है, उन्होंने सिर झुकाकर दण्डवत् किया।
फिरौन के सम्मुख मूसा और हारून
5 इसके पश्चात् मूसा और हारून ने जाकर फ़िरोन से कहा, "इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है : 'मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे कि वे जंगल में मेरे लिये पर्व करें।" 2 फ़िरौन ने कहा, “यहोवा कौन है कि मैं उसका वचन मानकर इस्राएलियों को जाने दूँ? मैं यहोवा को नहीं जानता, और मैं इस्राएलियों को नहीं जाने दूँगा।" 3 उन्होंने कहा, “इब्रियों के परमेश्वर ने हम से भेंट की है; इसलिये हमें जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाने दे, कि अपने परमेश्वर यहोवा के लिये बलिदान करें, ऐसा न हो कि वह हम में मरी फैलाए या तलवार चलवाए।" 4 मिस्र के राजा ने उनसे कहा, "हे मूसा, हे हारून, तुम क्यों लोगों से काम छुड़वाना चाहते हो ? तुम जाकर अपना-अपना बोझ उठाओ।" 5 और फिरौन ने कहा, “सुनो, इस देश में वे लोग बहुत हो गए हैं, फिर तुम उनको परिश्रम से विश्राम दिलाना चाहते हो!"
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