17 तब याकूब ने अपने बच्चों और स्त्रियों को ऊँटों पर चढ़ाया: 18 और जितने पशुओं की वह पहनराम में इकट्ठा करके धनाढ्य हो गया था, सब को कनान में अपने पिता इसहाक के पास जाने के विचार से साथ ले गया। 19 लावान अपनी भेड़ों का ऊन कतरने के लिये चला गया था, और राहेल अपने पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई।
20 अतः याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया. उसको न बताया कि मैं भागा जाता है। 21 वह अपना सब कुछ लेकर भागा, और महानद के पार उतरकर अपना मुँह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया।
लाबान द्वारा याकूब का पीछा करना
22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला कि याक़ूब भाग गया है। 23 इसलिये उसने अपने भाइयों को साथ लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा। 24 परन्तु परमेश्वर ने रात के स्वप्न में अरामी लाबान के पास आकर कहा, "सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।"" 25 और लाबान याकूब के पास पहुँच गया। याकूब अपना तम्बू गिलाद नामक पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा था, और लावान ने भी अपने भाइयों के साथ अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया।
26 तब लावान याकूब से कहने लगा, “तू ने यह क्या किया कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियों को ऐसा ले आया, मानो तलवार के बल से बन्दी बनाई गई हों? 27 तू क्यों चुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया, नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साथ मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता ? 28 तू ने तो मुझे अपने बेटे बेटियों को घूमने तक न दिया ? तू ने मूर्खता की है। 29 तुम लोगों की हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझसे बीती हुई रात में कहा, 'सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा।
30 भला, अब तू अपने पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्यों चुरा ले आया है?" 31 याकूब ने लावान को उत्तर दिया, "मैं यह सोचकर डर गया था कि कहीं न अपनी बेटियों को मुझसे छीन न ले। 32 जिस किसी के पास तू अपने देवताओं को पाए, वह जीवित न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, उसे भाई बन्धुओं के सामने पहिचानकर ले ले।" क्योंकि याकुब न जानता था कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है।
33 यह सुनकर लावान, याकूब और लिआ और दोनों दासियों के तम्बुओं में गया और कुछ न मिला। तब लिआ के तम्बू में से निकलकर राहेल के तम्बू में गया। 34 राहेल तो गृहदेवताओं को ऊँट की काठी में रखके उन पर बैठी थी। लावान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया। 35 राहेल ने अपने पिता से कहा, हे मेरे प्रभुः इस से अप्रसन्न न हो कि मैं तेरे सामने नहीं उठी क्योंकि मैं मासिकधर्म से हूँ।" अतः उसे ढूँढने पर भी गृहदेवता उसको न मिले।
36 तब याकुब क्रोधित होकर लावान से झगड़ने लगा, और कहा, "मेरा क्या अपराध है ? मेरा क्या पाप है कि तू ने इतना क्रोधित होकर मेरा पीछा किया है? 37 तु ने जो मेरी सारी सामग्री को टटोलकर देखा, तो तुझ को अपने घर की सारी सामग्री में से क्या मिला ? कुछ मिला हो तो उसको यहाँ अपने और मेरे भाइयों के सामने रख दे, और वे हम दोनों के बीच न्याय करें।
38 इन बीस वर्षों तक मैं तेरे पास रहा; इनमें न तो तेरी भेड़-बकरियों के गर्भ गिरे, और न तेरे मेड़ों का मांस मैं ने कभी खाया। 39 जिसे बनैले जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता था, उसकी हानि में ही उठाता था। चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता था। 40 मेरी तो यह दशा थी कि दिन को तो नाम और रात को पाला मुझे खा गया और नींद मेरी आंखों से भाग जाती थी।
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