यूसुफ के भाइयों का मिस्र में आगमन | यीशु मसीह के पवित्र वचन | मिस्र के बारे में जानकारी

 47 सुकाल के सातों वर्षों में भूमि बहुतायत से अन्न" उपजाती रही, 48 और यूसुफ उन सातों वर्षों में सब प्रकार की भोजनवस्तुएँ, जो मिस्र देश में होती थीं, जमा करके नगरों में रखता गया और हर एक नगर के चारों ओर के खेतों की भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। 49 इस प्रकार यूसुफ ने अन को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि गिनके रखा, यहाँ तक कि उसने उनका गिनना छोड़ दिया क्योंकि वे असंख्य हो गई।

50 अकाल के प्रथम वर्ष के आने से पहले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे । 51 यूसुफ ने अपने जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि 'परमेश्वर ने मुझ से मेरा सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है। 52 दूसरे का नाम उसने यह कहकर एप्रेम रखा, कि 'मुझे दुःख भोगने के देश में परमेश्वर ने फलवन्त किया है ।

53 मिस्र देश के सुकाल के सात वर्ष समाप्त हो गए; 54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षों के लिये अकाल आरम्भ हो गया। सब देशों में अकाल पड़ने लगा, परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था। 55 जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा; तब प्रजा फिरौन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी माँगने लगी और वह सब मिस्रियों से कहा करता था, ""यूसुफ के पास जाओ और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो।"* 56 इसलिये जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया और मिस्र देश में अकाल का रूप भयंकर हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारों को खोल खोलके मिस्त्रियों के हाथ अन्न बेचने लगा। 57 इसलिये सारी पृथ्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिये यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृथ्वी पर भयंकर अकाल था।

यूसुफ के भाइयों का मिस्र में आगमन

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यूसुफ के भाइयों का मिस्र में आगमन
42 जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न , तब उसने अपने पुत्रों से कहा, ""तुम जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन एक दूसरे का मुँह क्यों देख रहे हो।" 2 फिर उसने कहा, "मैं ने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिये तुम लोग वहाँ जाकर हमारे लिये अन्न मोल ले आओ, जिससे हम न मरें वरन् जीवित रहें।"* 3 अतः यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिये मिल को गए। 

4 पर यूसुफ के भाई बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयों के साथ न भेजा कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े। 5 इस प्रकार जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साथ इस्राएल के पुत्र भी आए, क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल था। 6 यूसुफ तो मिस्र देश का अधिकारी था, और उस देश के सब लोगों के हाथ वही अत्र बेचता था, इसलिये जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुँह के बल गिरके उसको दण्डवत् किया।  

7 उनको देखकर यूसुफ ने पहिचान तो लिया, परन्तु उनके सामने भोला बनके कठोरता के साथ उनसे पूछा, “तुम कहाँ से आते हो ?" उन्होंने कहा, "हम कनान देश से अन्न मोल लेने के लिये आए हैं।" 8 यूसुफ ने अपने भाइयों को पहिचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहिचाना। 9 तब यूसुफ अपने उन स्वप्नों को स्मरण करके जो उसने उनके विषय में देखे थे, उनसे कहने लगा, "तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा' को देखने के लिये आए हो।" 10 उन्होंने उससे कहा, "नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिये आए हैं। 

11 हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं।" 12 उसने उनसे कहा, "नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो।" 13 उन्होंने कहा, "हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरुष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा।"

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