30 तब याकूब ने यह कहकर उस स्थान का नाम पनीएल' रखा; "परमेश्वर को आमने सामने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है।" 31 पनीएल के पास से चलते चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जाँघ से लंगड़ाता था। 32 इस्राएली जो पशुओं की जाँघ को जोड़वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है कि उस पुरुष ने याकूब की जाँच के जोड़ में जंघानस को हुआ था।
याकूब और एसाव का मिलन
33 याकूब ने आँखें उठाकर यह देखा कि एसाव चार सौ पुरुष संग लिये हुए चला आता है। तब उसने बच्चों को अलग- अलग बाँटकर लिआ और राहेल और दोनों दासियों को सौंप दिया। 2 और उसने सब से आगे लड़कों समेत दासियों को, उसके पीछे लड़कों समेत लिआ को और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा, 3 और आप उन सब के आगे बढ़ा और सात बार भूमि पर गिर के दण्डवत् की, और अपने भाई के पास पहुँचा।
4 तब एसाव उससे भेंट करने को दौड़ा, और उसको हृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा, फिर वे दोनों रो पड़े। 5 तब उसने आँखें उठाकर स्त्रियों और बच्चों को देखा, और पूछा, “ये जो तेरे -साथ हैं वे कौन हैं ?" उसने कहा, "ये तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझ को दिया है।" 6 तब लड़कों समेत दासियों ने निकट आकर दण्डवत् किया 7 फिर लड़कों समेत लिआ: निकट आई और उन्होंने भी दण्डवत् किया; अन्त में यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत् किया।
8 तब उसने पूछा, "तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है ?" उसने कहा, "यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो।' 9 एसाव ने कहा, "हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है जो कुछ तेरा है वह तेरा ही रहे। 10 याकुब ने कहा, "नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर; क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है। 11 इसलिये यह भेंट जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर; क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है।" जब उसने उससे बहुत आग्रह किया, तब उसने भेंट को ग्रहण किया।
12 फिर एसाव ने कहा, “आ, हम बढ़ चलें; और मैं तेरे आगे आगे चलूँगा।" " 13 व्याकूब ने कहा, "हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साथ सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़-बकरियाँ और गायें हैं; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हाँके जाएं, तो सब के सब मर जाएँगे।
14 इसलिये मेरा प्रभु अपने दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार जो मेरे आगे हैं, और बच्चों की गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपने प्रभु के पास पहुँचूँगा।"15 एसाव ने कहा, "तो अपने साथियों में से मैं कई एक तेरे साथ छोड़ जाऊँ।" उसने कहा, "यह क्यों ? इतना ही बहुत है कि मेरे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।" 16 तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया। 17 परन्तु याकूब वहाँ से निकल कर सुक्कोत को गया, और वहाँ अपने लिये एक घर, और पशुओं के लिये झोपड़े बनाए। इसी कारण उस स्थान का नाम सुक्कोत पड़ा।
18 याकूब जो पहनराम से आया था, उसने कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल क्षेम से पहुँचकर नगर के सामने डेरे खड़े किए। 19 और भूमि के जिस खण्ड पर उसने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उसने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों के हाथ से एक सौ कसीतों' में मोल लिया।' 20 वहाँ उसने एक वेदी बनाकर उसका नाम एल एलोहे - इस्राएल रखा
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